दिन और रात एसे ही गुजरते है,
हम आप के दिदार को तरसते है;
छुप के अक्सर आप को देखते है,
बस आप से बात करने से कतराते है।
दिल में इल्तज़ा बस इतनी ही है,
कभी तो आप की नज़र में आयेंगे;
आप खुद ही हमारे पास आयेंगे,
और हमारा हाल ए दिल पूछेंगे।
बचपन हमने साथ जंहा गुजरा था,
हम आज भी उसी चौराहे को देखते है,
आज भी हम उसी मिट्टी के ढेर में बैठते है,
और आप को सोने के ढेर पर बैठा देखते है।
ख़ुशी होती है आप को खुश देख कर,
मुस्कुरा लेते है आप को मुस्कुराते देख कर,
मालिक से यही दुआ करते है हर बार,
गम का एक भी लम्हां न आये आप के पास।
हम आप के दिदार को तरसते है;
छुप के अक्सर आप को देखते है,
बस आप से बात करने से कतराते है।
दिल में इल्तज़ा बस इतनी ही है,
कभी तो आप की नज़र में आयेंगे;
आप खुद ही हमारे पास आयेंगे,
और हमारा हाल ए दिल पूछेंगे।
बचपन हमने साथ जंहा गुजरा था,
हम आज भी उसी चौराहे को देखते है,
आज भी हम उसी मिट्टी के ढेर में बैठते है,
और आप को सोने के ढेर पर बैठा देखते है।
ख़ुशी होती है आप को खुश देख कर,
मुस्कुरा लेते है आप को मुस्कुराते देख कर,
मालिक से यही दुआ करते है हर बार,
गम का एक भी लम्हां न आये आप के पास।
आशिष महेता
दिन और रात एसे ही गुजरते है by Ashish A. Mehta is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.
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